नया वर्ष , नया समय , नए निर्णय , नए सपने और उन्हें पूरा करने के लिए नया उत्साह। इस एक तारीख के गर्भ में आने वाले तीन सौ चौसठ दिन की कहानियां छिपी हैं। इसलिए नए के उत्साह का मतलब केवल सक्रियता ही न समझी जाए।
यह पहली तारीख केवल दिमाग और शरीर को दौड़ाने में ही खर्च न कर दी जाए। आज थोड़ा समय रुकने को भी दीजिए। मेडिटेशन करके , निर्विचार होकर शांति के साथ पहला कदम उठाइए। वरना चाहत तो हमारी जीतने की होगी , पर पराजय विश्व विजेता रावण की तरह हो जाएगी।
सुंदरकांड का दृश्य है। हनुमान बीते वर्ष की तरह लंका का माहौल पूरी तरह बदलकर जा चुके थे।
आज रावण अपनी सभा में पहुंचा था , नई शुरुआत करनी थी उसे निर्णयों की।
तुलसीदासजी ने दृश्य लिखा है –
अस कहि बिहसि ताहि उर लाई।
चलेउ सभां ममता अधिकाई।।
मंदोदरी हृदयं कर चिंता।
भयउ कंत पर बिधि बिपरीता।।
यानी रावण ने ऐसा कहकर हंसकर उसे हृदय से लगा लिया और अधिक स्नेह जताते हुए वह सभा में चला गया।
बीते वक्त और आने वाले वक्त के साथ चिंता एवं खुशी का माहौल रहता है। भविष्य की चिंता में थी मंदोदरी , क्योंकि वह अपने पति का कमजोर पक्ष जानती थी।
ज्यों ही रावण सभा में जाकर बैठा , उसे खबर मिली कि शत्रु की सारी सेना समुद्र के उस पार आ गई है। उसने मंत्रियों से सलाह मांगी कि अब क्या करना चाहिए।
तब वे सब हंसकर बोले कि इसमें सलाह की कौनसी बात है? रावण को गलत सलाह मिलने लगी।
अभिप्राय यह कि जब गलत सलाह मिलने लगे , तभी असफलता का जन्म होता है। हमें नए वर्ष में सावधान रहकर सात्विकता से सफलता का आलिंगन करना है।
क्रमशः …….