वैशाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध को जब बोध प्राप्त हुआ , तो ऐसा कहा जाता है कि वे एक सप्ताह तक मौन रहे। उन्होनें एक भी शब्द नहीं बोला।
पौराणिक कथायें कहती हैं कि स्वर्ग के सभी देवता चिंता में पड़ गये। वे जानते थे कि करोड़ों वर्षों में कोई विरला ही बुद्ध के समान ज्ञान प्राप्त कर पाता है। और वे अब चुप हैं !
देवताओं नें उनसे बोलने की विनंती की। महात्मा बुद्ध ने कहा , ” जो जानते हैं , वे मेरे कहने के बिना भी जानते हैं और जो नहीं जानते है , वे मेरे कहने पर भी नहीं जानेंगे। एक अंधे आदमी को प्रकाश का वर्णन करना बेकार है। जिन्होनें जीवन का अमृत ही नहीं चखा है उनसे बात करना व्यर्थ है , इसलिए मैनें मौन धारण किया है। जो बहुत ही आत्मीय और व्यक्तिगत हो उसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है ? शब्द उसे व्यक्त नहीं कर सकते। शास्त्रों में कहा गया है कि, जहाँ शब्दों का अंत होता है वहाँ सत्य की शुरुआत होती है । ”
देवताओं ने उनसे कहा , ” जो आप कह रहे हैं वह सत्य है परन्तु उनके बारे में सोचें जो सीमारेखा पर हैं , जिनको पूरी तरह से बोध भी नहीं हुआ है और पूरी तरह से अज्ञानी भी नहीं हैं। उनके लिए आपके थोड़े से शब्द भी प्रेरणादायक होंगे , उनके लाभार्थ आप कुछ बोलें और आपके द्वारा बोला गया हर एक शब्द मौन का सृजन करेगा । ”
शब्दों का उद्देश्य मौन बनाना है। यदि शब्दों के द्वारा और शोर होने लगे तो समझना चाहिए , वे अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। बुद्ध के शब्द निश्चित ही मौन का सृजन करेंगे , क्योंकि बुद्ध मौन की प्रतिमूर्ति हैं। मौन जीवन का स्त्रोत है और रोगों का उपचार है।
जब लोग क्रोधित होते हैं तो वे मौन धारण करते है। पहले वे चिल्लाते हैं और फिर मौन उदय होता है। जब कोई दु:खी होता है , तब वह अकेला रहना चाहता है और मौन की शरण में चला जाता है। उसी तरह जब कोई शर्मिंदा होता है तो भी वह मौन का आश्रय लेता है। जब कोई ज्ञानी होता है , तो वहाँ पर भी मौन होता है।
अपने मन के शोर को देखें। वह किसके लिए है ? धन ? यश ? पहचान ? तृप्ति ? सम्बन्धों के लिये ? शोर किसी चीज़ के लिए होता है ; और मौन किसी भी चीज़ के लिए नहीं होता है। मौन मूल है ; और शोर सतह है।