कई बार हम लक्ष्य के करीब होते हुए भी चूक जाते हैं। जीतने की घड़ी में थोड़ी सी हड़बड़ाहट जीत को हार में बदल देती है। जब मंजिल के नजदीक हों तो सबसे ज्यादा जरूरी होती है एकाग्रता। एकाग्रता का सीधा संबंध होता है मन से। मन जितना ज्यादा शांत रहेगा , प्रयास उतने अच्छे रहेंगे। परिणाम भी मनोनुकुल मिलेंगे।
भागवत में सत्यवान और सावित्री की कथा देखिए। सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया था। वो शादी के पहले ही जानती थी कि सत्यवान की आयु सिर्फ एक साल ही और बची है। फिर भी उसे विश्वास था कि वो अपने प्रयासों से सत्यवान को बचा सकती है। विवाह के एक साल बाद वो दिन भी आ गया , जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होनी थी।
सावित्री ने बिना घबराए , बिना डरे और बिना किसी हड़बड़ाहट के अपने प्रयास शुरू किए। उसने चार-पांच दिन पहले से ही उपवास और प्रार्थनाएं शुरू कर दी। अपने हावभाव या व्यवहार से भी किसी पर यह जाहिर नहीं होने दिया कि वो सत्यवान की मृत्यु के बारे में जानती है।
जिस दिन यमराज सत्यवान के प्राण हरने आए , सावित्री ने उन्हें रोक लिया। उसकी गोद में सिर रखकर सत्यवान सो रहा था और यमराज ने प्राण हर लिए। लेकिन फिर भी वह घबराई नहीं , उसने यमराज की स्तुति शुरू कर दी। जिससे प्रसन्न होकर यमराज उसे वरदान देने लगे।
अपने ससुर का खोया राज्य , उनकी आंखें मांगने के बाद सावित्री ने खुद के लिए सौ पुत्रों का वरदान मांग लिया। यमराज ने बिना सोचे उसे वो वरदान भी दे दिया। नतीजा सावित्री ने यमराज को अपनी बातों में उलझाकर सत्यवान के प्राण बचा लिए क्योंकि सत्यवान के बिना सौ पुत्रों की प्राप्ति संभव नहीं थी।
ये था सावित्री की एकाग्रता और आत्म विश्वास का कमाल। अगर उसका मन थोड़ा भी विचलित होता , वो थोड़ा भी घबरा जाती , डर जाती तो फिर अपने पति के प्राण नहीं बचा पाती।