प्रेम के बिना मानव जीवन का कोई अर्थ नहीं होता। प्रेम और भक्ति में जब समर्पण की भावना जुड़ जाती है तब एक शक्ति का निर्माण होता है। जीवन के लिए संजीवनी है प्रेम। क्योंकि प्रेम परमात्मा की एक अनुपम देन है। मनुष्य को परमात्मा ने अनेक प्रकार की विशिष्टताओं से युक्त बनाया है।
उसमें सबसे बड़ी विशिष्टता यह डाली है कि मनुष्य किसी को भी प्रेम करके अपना बना सकता है। सच पूछिए तो प्रेम के माध्यम से हिंसक जन्तुओं पर काबू पाने की घटनाएं तो देखी ही जाती हैं किंतु पत्थर से भी परमात्मा को प्रकट कर लेने के अनेक उदाहरण इतिहास में मौजूद हैं।
प्रेम भरा व्यवहार हमें लोगों से जोड़ता है। जबकि नफरत करने से अपने सगे भी दुश्मन की तरह पेश आने लगते हैं। इसलिए प्रेम को सबसे सुन्दर हथियार बताया गया है , जिसके द्वारा सबको आसानी से अपने वश में किया जा सकता है।
इसलिए रात को जब हम सोने जा रहे हैं तब मन ही-मन ईश्वर को याद करें और जो भी बात हमारे मन में हो , उसे अपनी आत्मा की आवाज में उनसे प्रेम पूर्वक कह डालें। इससे हमारा ईश्वर के साथ सीधा वार्तालाप करने का मार्ग खुल जाता है।
ईश्वर तो पहले से ही जानते हैं , लेकिन उनके सामने प्रेम से हृदय खोल देने से हम स्वयं को उनके प्रति ग्रहणशील बनाते हैं। कभी ऐसा भी प्रतीत होता है कि दिन और महीने गुजरते जा रहे हैं और ईश्वर हमें हमारे प्रेम का कोई प्रत्युत्तर नहीं दे रहे हैं , तब भी हम निराश न हों।
हम हार मान लेते हैं और कहने लगते हैं कि अरे , क्या फायदा है , ईश्वर हमारी सुनते ही नहीं। वास्तव में ईश्वर हमारी हर बात सुनता हैं और समय आने पर वह हमारी सहायता भी करता है।
हम जीवन के किसी भी चरण में निराशा या हार को स्वीकार न करके अपनी प्रेम की साधना को हर हाल में जारी रखें। जब कभी हमारे हृदय में प्रेम का आनंद प्राप्त नहीं हो पाता है तब भी हमें सोचना चाहिए कि कोई बात नहीं है प्रभु , मैं हार नहीं मानने वाला हूं।
मैं आप से प्रेम करना नहीं छोड़ूंगा। क्योंकि जिस ईश्वर से हम प्रेम करते हैं वह हमारे मौन का या कभी-कभार कहे गए कठोर शब्दों का गलत अर्थ निकालकर हमसे मुंह नहीं मोड़ेगा। कारण कि हम ईश्वर के प्रेम भरे सांचे में ढाले गए हैं। हम वास्तव में उनसे प्रेम करें।